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कभी आसमाँ तो कभी जमीन देखी है

Ek Aawaaj
Ek Aawaaj
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नारी हमारे समाज का एक अभिन्न हिस्सा है । एक आदमी, औरत के बिना अधूरा है ।
बिना नारी के, भविष्य के समाज की कल्पना ही व्यर्थ है। लेकिन आज क्या हो गया है
इंसान को, समझ नही आता । पिछले चार पाँच माह से प्रतिदिन शायद ही कोई अखबार
मैनें पढ़ा हो जिसमें किसी लड़की या औरत के बलात्कार की खबर न छपी हो । शर्म की
दीवार को इस तरह से तोड़ा गया है कि पिता-पुत्री और भाई-बहन के रिश्ते तक को नही
बख्शा गया । क्या नारी तन पिपासा ही रह गई है ? और कुछ नही बचा ? शब्दहीन है
इन प्रश्नों के जवाब । निम्न लिखित चंद पंक्तियों में मैने पूर्व नारी को खोजने की चेष्टा
की है –
कभी आसमाँ तो कभी जमीन देखी है
दिल ने तेरी सूरत हर वक्त हसीन देखी है
तेरी मुस्कुराहट पर फूलों का खिलना देखा है
तेरे आँचल से महकती फिज़ा दिलनशीं देखी है
तेरे कदमों पर थिरकती बहार नशीं देखी है
तेरी आहट पर खिलता चमन देखा है
तेरी चंचल आँखों में तैरता अमन देखा है
खो गया खुद में तुझे सोचकर,
तो होकर बचैन,
कभी आसमाँ तो कभी जमीन देखी है
बहते दर्द को घावों से देखा है
अनकहे शब्दों को सूखे लबों से देखा है
रोम रोम से रिसती वेदना और
तेरी आँखों में छिपी नमीं देखी है
बहुत खोजा उन चंचल निगाहों को मैने
केवल दर्द-ए-दरिया मिला
और बस
तेरी खुशियों की बंजर, वीरान जमीं मिली है
थक गया तेरी वो दिलकश सूरत खोजते खोजते,
हर तरफ
कभी आसमाँ तो कभी जमीन देखी है

नारी हमारे समाज का एक अभिन्न हिस्सा है । एक आदमी, औरत के बिना अधूरा है ।

बिना नारी के, भविष्य के समाज की कल्पना ही व्यर्थ है। लेकिन आज क्या हो गया है

इंसान को, समझ नही आता । पिछले चार पाँच माह से प्रतिदिन शायद ही कोई अखबार

मैनें पढ़ा हो जिसमें किसी लड़की या औरत के बलात्कार की खबर न छपी हो । शर्म की

दीवार को इस तरह से तोड़ा गया है कि पिता-पुत्री और भाई-बहन के रिश्ते तक को नही

बख्शा गया । क्या नारी तन पिपासा ही रह गई है ? और कुछ नही बचा ? शब्दहीन है

इन प्रश्नों के जवाब । निम्न लिखित चंद पंक्तियों में मैने पूर्व नारी को खोजने की चेष्टा

की है –

कभी आसमाँ तो कभी जमीन देखी है

दिल ने तेरी सूरत हर वक्त हसीन देखी है

तेरी मुस्कुराहट पर फूलों का खिलना देखा है

तेरे आँचल से महकती फिज़ा दिलनशीं देखी है

तेरे कदमों पर थिरकती बहार नशीं देखी है

तेरी आहट पर खिलता चमन देखा है

तेरी चंचल आँखों में तैरता अमन देखा है

खो गया खुद में तुझे सोचकर,

तो होकर बचैन,

कभी आसमाँ तो कभी जमीन देखी है

बहते दर्द को घावों से देखा है

अनकहे शब्दों को सूखे लबों से देखा है

रोम रोम से रिसती वेदना और

तेरी आँखों में छिपी नमीं देखी है

बहुत खोजा उन चंचल निगाहों को मैने

केवल दर्द-ए-दरिया मिला

और बस

तेरी खुशियों की बंजर, वीरान जमीं मिली है

थक गया तेरी वो दिलकश सूरत खोजते खोजते,

हर तरफ

कभी आसमाँ तो कभी जमीन देखी है

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