Ek Aawaaj
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माँ धरती करे पुकार,
मत करो इतना प्रहार,
छिल गया बदन मेरा,
सह-सह कर तुम्हारा वार,
हर जख्म तेरा सहा,
एक शब्द तुझसे न कहा,
अब हुयी हर सीमा पार,
मत करो इतना प्रहार,
माँ धरती…
तुझे पेड़-पौधों की छाँव दी,
और दिया मद-मस्त हवाओं का दुलार,
नदियों, झरनों के निर्मल जल से,
सँवारा तेरे शरीर का खुमार,
तोड़ दिया हर लज्जा का द्वार,
बेशुमार किये सीने पर वार,
मत करो इतना प्रहार,
माँ धरती…
घोल दिया जहर इन हवाओं में,
ढ़ा दिया कहर इन फिजाओं में,
मत दिला क्रोध माँ को, सह नही पायेगा,
पड़ेगी माँ की मार, दर्द कह नही पायेगा,
तड़प उठेगा हर घूँट और हवा के लिये,
जिन्दगी चाहेगा मगर, जिन्दा रह नही पायेगा,
अपनी मौत का जश्न खुद देखेगा,
और देखता रह जायेगा,
कुछ न मिलेगा जब करेगा रहम की पुकार,
मत करो इतना प्रहार,
माँ धरती करे पुकार ।
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