- 10 Posts
- 19 Comments
मैं अपने इस लेख के जरिये किसी व्यक्तिविशेष की धार्मिक भावनाओं को ठेस नही पहुचाना चाहता हूँ और न ही मैं ये जताना चाहता हूँ कि मैं नास्तिक हूँ । मैं खुद भी भगवान पर विश्वास करता हूँ । बस भगवान के लिये मेरी व्यक्तिगत विचारधारायें अलग हैं ।
मेरा यह मानना है कि भगवान एक ऊर्जा का स्रोत है और हम सभी लोग उस ऊर्जा के छोटे – छोटे पुँज हैं । जिस तरह ऊर्जा का कोई आकार नही होता उसी तरह भगवान का कोई आकार नही है । भगवान के निराकार रूप के बारे में हमारे कई संतों ने भी कहा है जैसे कि कबीर-दास जी, गुरुनानक जी तथा अन्य कई संत । उन्होंने हमेशा कहा कि भगवान हमारे अन्दर है । ऐसा क्यूँ कहा उन्होंने ? क्युँकि हम सब लोग एक ऊर्जा-पुँज है और एक ऊर्जापुँज को बाहर से ऊर्जा की जरूरत नही होती ।
योग गुरुओं ने हमेशा एक बात कही कि हमारे शरीर में सात ऊर्जा-स्रोत हैं जिनको उन्होने कुन्डिलिनीयों का नाम दिया । हमारे भगवानों के हर चित्र, फोटो में भगवान के पीछे की तरफ ऊर्जा का एक चक्र दिखाया जाता है जो कि यह सिद्ध करता है कि भगवान हमें ऊर्जा देते है अर्थात भगवान एक ऊर्जा है । हम सभी लोगों ने उस ऊर्जा को आत्मसात करने के लिये उसको अलग – अलग रंग, रूप, आकार दिये हैं ।
हमेशा धार्मिक ग्रन्थों, किताबों में कहा गया कि हमारा शरीर खत्म होने के बाद उसका पुर्न-जन्म होता है, आत्मा नष्ट नही होती, क्यूँ कहा गया है ऐसा ?? क्यूँकि हम ऊर्जा हैं और ऊर्जा कभी खत्म नही होती । स्वर्ग – नरक कुछ नही होता, ऐसा इसलिये कहा गया ताकि हम सद्कर्म करें और हमारी ऊर्जा नकारात्मक न हो, सदैव सकारात्मक बनी रहे । क्युँकि ऊर्जा का नकारात्मक रूप सदा ही विनाशकारी रहा है ।
आज हम सभी उस एक ही ऊर्जा को आधार में रख कर लड़ाई – झगड़े करते हैं । हम ये क्यूँ नही समझते कि हम सब एक हैं, ऊर्जा हैं । भगवान कुछ नही एक आस्था है, एक श्रद्धा है, एक विश्वास है । और हमारे समाज में न जाने क्या क्या कृत्य किये जाते हैं भगवान के नाम पर ।
हमें किसी भी स्वरूप पर विश्वास करना चाहिये न कि अंध-विश्वास । हम सबमें एक भगवान है, क्युँकि हम सब एक ही ऊर्जा के अलग अलग रूप हैं ।
Read Comments